एक असह्य पीड़ा और
वेदना से ग्रसित वर्तमान परिदृश्य में
गांव की ख़ामोश सड़कें
शहर की तंग गलियां
खोई खोई सी महसूस होती हैं
ये सारी दुनियां
कहीं बहते आंसू.....
तो कहीं बिकती है सांसें
अजीब सी दिखने लगी है
आज़ ये दुनिया
कहीं मासूमों की चीखें
कहीं धरती पर लगा लाशों का अंबार है
सिमट सी रही दुनियां
न जाने हर मन में हर पल
एक दहशत व्याप्त है
हर शख्स को शायद
जीवन की तलाश है
जन जन कर रहा भाग-दौड़
यूं दुखों में डूबकर
कलप रही है दुनियां
पर कहीं इंसानियत को शर्मसार करतीं
सांसों के लिए मोल-भाव कर
कालाबाजारी कर रही
हाय! कैसी ये विचित्र दुनियां
आवश्यकता है मृत संवेदनाओं को
पुनर्जीवित करने की
जिंदगी के बुझते दीपों को
फिर से प्रज्जवलित करने की
क्यों न इन जहरीली हवाओं को
फिज़ा से दूर ही रखी जाये
जहां तक संभव हो इस माहौल में
एक दूसरे की सांसों को बचाने में
हरसंभव मदद की जाये
राजीव भारती
पटना बिहार (गृह नगर)
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