तेरी यादों में ही सुध-बुध
सब खोया हुआ रहता हूं
पल प्रतिपल बस तुम्हें ही
मैं सुमिरन किया करता हूं
कब लोगे तुम सुध हमारी
हे मुरलीधर, गोवर्धनधारी
तुम तो हमारी हर सांस में
हर धड़कन में, तन-मन में
तुम्हारे बिना कुछ भी नहीं
तेरे प्रति मेरा प्रेम निश्छल
तुझसे अनन्त प्यार करता
पर कोई हिसाब न रखता
नयनों में कोई ख्वाब नहीं
तेरी अदा का जवाब नहीं
गर होता जो जोर तुम पर
हम जहां से तुम्हें चुरा लेते
सदा हेतु अपने निकट से
कभी भी तुम्हें जाने न देते
छुपाके दिलों में ऐसे रखते
कोई तुम्हें देखने नहीं पाते
ऐसा अंदाज है तेरी अदा में
चित्र देखकर खुशी चेहरे पे
चाहत है सब रिश्ते तोड़ लूं
बस तुमसे ही नाते जोड़ लूं
तुझे पाने को खुद को खोया
कहां खुद को मैं ढूंढूं कान्हा
अब इतना सताओ ना कान्हा
मेरे प्यार को जानो ना कान्हा
राजीव भारती
पटना बिहार गृह नगर
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