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बचपन

बचपन

बचपन होता है कितना मासूम,
छल - प्रपंच से एकदम अंजान।
जाति- पाति का भेद नहीं जाने,
मुखमंडल पर प्रतिपल मुस्कान।
कभी रूठना और कभी मनाना,
झगड़ों का ख़ुद करते समाधान।
मिल जुलकर रहते हैं आपस में,
नहीं बघारते हैं कभी झूठी शान।
मस्त मलंग सदृश उनका जीवन,
कटुता का अल्प मात्र नहीं भान।
फ़िक्र नहीं करते धूप बारिश की,
नहीं तनिक मन में हो अभिमान।
जीवन हो कतिपय ही आनंदित,
सुख - दुःख का नहीं कोई ज्ञान।
हर्षित रहता सर्वदा ही तन-मन,
मोह-माया भी नहीं करें परेशान।
नहीं घमंड अथवा लोभ मन में,
एक दूजे के प्रति मान -सम्मान
रहें विरक्त संसार के उलझन से,
ऊंच नीच न कर पायें व्यवधान।

राजीव भारती

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