सुनो ना!
बेशक नादान हूं मैं
पर नासमझ नहीं
जो छल और निश्छल में
फ़र्क की मुझे थोड़ी भी समझ नहीं
हां, चुप रहना
मेरी आदतों में शामिल है
पर, मैं कदापि बेबस नहीं
जो आरोपों की दीवारों को
लांघ पाने में किंचित असमर्थ हूं
सच तो यह है कि
तुम्हारे इश्क में
हम रेगिस्तान हो गए थे
बीतते वक्त के संग
हम वीरान हो गए थे
बेशक,सबको ही सिखाया था
मैंने संभल कर चलना मगर
अपनी ही कहानी में
हम तो नादान हो गए थे
हां , अपनी ही जिंदगी पर
कुछ क्रोध अवश्य ही आया मुझे
पर सच मानो परेशान नहीं हुए थे
सोचा भी बहुत, समझाया भी बहुत
दिल में अपने, तुमको छुपाया भी बहुत
पर कितना ही नादान था ये दिल!
क्यों नहीं समझ पाया, आखिर
कि, तुम औरों की ही मानिंद
इस दिल के टुकड़े कर जाओगे
हां,अपनी धड़कनों की
सदाएं सुन नहीं पाया
नादान दिल हक़ीक़त से
वाकिफ नहीं हो पाया
नहीं मालूम क्यों
ये दिल जान नहीं पाया
सबकुछ जानते हुए भी
बिल्कुल अंजान बन गया
और तुझको सही मानकर
नादानी में 'नादान' बन गया
खैर छोड़ो!
मुझे तुमसे कोई भी शिकायत नहीं
तुम्हें भूल जाना चाहता हूं
मैं जो भी हूं , जैसा भी हूं
बस यूं ही रहना चाहता हूं ।
~~ राजीव भारती
पटना बिहार (गृह नगर)
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