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मुझे लौटा दो....

 मुझे लौटा दो....



मुझे लौटा दो
वो गुज़ऱे हुए पल़
जो तुमने ग़ुजारे थे मेरे संग ,
चूभते हैं वो अब दिल में
शूल की मानिंद
मुझे लौटा दो
वो वादे,जो तुमने कभी
किय़े थे मुझसे
संग संग चलने की
बिखर ग़ये , जो ज़मीं पर,
सूखे ऱेत़ की त़रह,
मुझे लौटा दो
वो रिश्ते जिसे,
तुमने दिया था
प्यार का नाम ,
वक्त की आंधियों में
दरक से ग़ये हैं , जो
एक दीवार की तरह
मुझे लौटा दो
वो एहसास,जो पाया था
तुम्हारे सामीप्य में
कुम्हला से गये हैं
विरह की धूप में
गुलाब की सूखी
पंखुड़ियों की त़रह

राजीव भारती
स्वरचित मौलिक रचना
गौतम बुद्ध नगर नोयडा

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